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” अपनी मेहनत पर खरी उतरी थी वो मगर ,
सहकर्मी को उसकी खुशी बर्दाश ना हुई
ज़िन्दगी छीन लेना सही लगा उसे ,
उसके संग खुद को भी चोट पहुँचाना सही लगा उसे ,
इंसानियत खो बैठा वो जो अपनी सहकर्मी को खुश न देख सका,
निकली थी वो जनता को इंसाफ दिलाने,
आज उसी की आत्मा भटक रही है इंसाफ माँगने……”
-RADHIKA DHASMANA