News

” PALAYAN…. “

0 0

पलायन एक स्वाभाविक प्रक्रिया रही है। प्राचीन समय से ही मनुष्य अलग अलग स्थानों में जाकर रोजगार के साथ साथ नए जीवन मूल्यों को अपनाता रहा। यह प्रक्रिया मनुष्य के सामाजिक आर्थिक जीवन में परिवर्तन लाने में भी सहायक रही है। उत्तराखंड के संबंध में पलायन एक विकट समस्या रही है क्योंकि पलायन मैं ढाचागत सुविधाओं का अभाव रहा है , जिसके कारण आज भी रोजगार के लिए पलायन बहुत तेजी से बढ़ रहा है। उत्तराखंड राज्य बनने के एक वर्ष बाद भी नियोजन के अभाव में एक करोड़ से अधिक जनता देश विदेश के विभिन्न शहरों में रहकर रोजगार प्राप्त कर रही है। पलायन का यह आंकड़ा भारत वर्ष में सर्वाधिक है।
पलायन की दृष्टि से उत्तराखंड के पौड़ी और अल्मोड़ा जनपदों की स्थिति सबसे ज़्यादा खराब है। यहां से जो आरंभिक सिफारिशें आ रही हैं उसके मुताबिक इन दोनों जनपदों से लगभग डेढ़ सौ गाँव पूरी तरह से खाली हो चुके हैं। पलायन को रोकने के लिये यह बेहद ज़रूरी है कि, जबतक हम पहाड़ के दुरस्त क्षेत्रों में आम व्यक्ति के लिए स्थानीय संसाधनों पर आधारित रोज़गार की व्यवस्था नहीं करते तब तक पलायन को रोकना सरकार के लिए चुनौति होगी।


इसलिए जरूरी है कि पहाड़ के दुरस्त क्षेत्रों तक हम स्वाथ्य , शिक्षा, पानी और संचार इन जनसुविधाओं को आम जनता के लिए नही सुलभ करा पाते तब तक पलायन की गति निरंतर बढ़ती रहेगी । इससे न केवल हमारे सामाजिक आर्थिक हित प्रभावित होंगे , वरण क्योंकि हम अंतराष्ट्रीय सीमाओं से जुड़े लोग भी हैं। यहां सीमाओं का खाली होना सरकार और जनता की दृष्टि से बहुत ही संवेदनशील है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय सीमा तिब्बत, चीन और नेपाल से लगा हमारा यह क्षेत्र बहुत ही संवेदनशील; और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण भी है।
इसलिए जब तक जनता के लिए सरकार जनसुविधाओं को सुलभ नही कराती तब तक पलायन को रोकना बहुत ही कठिन होगा। अतः सामरिक और सामाजिक – आर्थिक दृष्टि से सीमावर्ती क्षेत्रों का खाली होना एक भयावह स्थिति की दस्तक मिलना जैसा होगा।

Happy
Happy
0 %
Sad
Sad
0 %
Excited
Excited
0 %
Sleepy
Sleepy
0 %
Angry
Angry
0 %
Surprise
Surprise
0 %